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स॒मिधा॒ग्निं दु॑वस्यत घृ॒तैर्बो॑धय॒ताति॑थिम्। आस्मि॑न् ह॒व्या जु॑होतन ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒मिधेति॑ स॒म्ऽइधा॑। अ॒ग्निम्। दु॒व॒स्य॒त॒। घृ॒तैः। बो॒ध॒य॒त॒। अति॑थिम्। आ। अ॒स्मि॒न्। ह॒व्या। जु॒हो॒त॒न॒ ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किन का सेवन करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थो ! तुम लोग जैसे (समिधा) अच्छे प्रकार इन्धनों से (अग्निम्) अग्नि को प्रकाशित करते हैं, वैसे उपदेश करनेवाले विद्वान् पुरुष की (दुवस्यत) सेवा करो और जैसे सुसंस्कृत अन्न तथा (घृतैः) घी आदि पदार्थों से अग्नि में होम करके जगदुपकार करते हैं, वैसे (अतिथिम्) जिसके आने-जाने के समय का नियम न हो, उस उपदेशक पुरुष को (बोधयत) स्वागत उत्साहादि से चैतन्य करो और (अस्मिन्) इस जगत् में (हव्या) देने योग्य पदार्थों को (आजुहोतन) अच्छे प्रकार दिया करो ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सत्पुरुषों ही की सेवा और सुपात्रों ही को दान दिया करें, जैसे अग्नि में घी आदि पदार्थों का हवन करके संसार का उपकार करते हैं, वैसे ही विद्वानों में उत्तम पदार्थों का दान करके जगत् में विद्या और अच्छी शिक्षा को बढ़ा के विश्व को सुखी करें ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याणां के सेवनीयाः सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(समिधा) सम्यगग्निसंस्कृतेनान्नादिना (अग्निम्) उपदेशकं विद्वांसम् (दुवस्यत) सेवध्वम् (घृतैः) घृतादिभिः (बोधयत) चेतयत (अतिथिम्) अनियततिथिमुपदेशकम् (आ) (अस्मिन्) (हव्या) दातुमर्हाणि (जुहोतन) दत्त। [अयं मन्त्रः शत०६.८.१.६ व्याख्यातः] ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्था ! यूयं समिधाग्निमिवान्नादिनोपदेशकं दुवस्यत, घृतैरतिथिं बोधयत, अस्मिन् हव्या आजुहोतन ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सत्पुरुषाणामेव सेवा कार्या, सत्पात्रेभ्य एव दानं च देयम्। यथाग्नौ घृतादिकं हुत्वा संसारोपकारं जनयन्ति, तथैव विद्वत्सूत्तमानि दानानि संस्थाप्यैतैर्जगति विद्यासुशिक्षे वर्धनीये ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सत्पुरुशांचीच सेवा करावी. सुपात्री दान करावे. जसे अग्नीमध्ये घृत इत्यादी पदार्थांची आहुती देऊन यज्ञ केला जातो व जगावर उपकार केला जातो तसे विद्वानांना उत्तम पदार्थाचे दान करून जगात विद्या व उत्तम शिक्षण वाढवावे आणि सर्व जगाला सुखी करावे.